Sunday, July 14, 2013

फ़िराक़ गोरखपुरी जी की एक गजल

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से ही पहचान लेते हैं 

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
तो ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

हम-आहंगी में भी इक चाशनी है इख्तिलाफों की
मेरी बातें ब-उन्वाने-दिगर वो मान लेते हैं

जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा नी जान लेते हैं

रफ़िके-जिन्दगी भी अब अनिसे-वक्ते-आखिर है
तेरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं

फ़िराक अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी हम पहचान लेते हैं