Saturday, January 5, 2013

इन्दर ( इनरु मुया )


           बहुत समय पहले की बात है एक गांव में  इन्दर नाम का लड़का  रहता था| इन्दर का इस दुनियां में कोई नहीं था|बेचारा अनाथ था| लोग उसे इनरु मुया  इनरु  मुया कहते थे|(मुया का मतलब अनाथ से है) जब इन्दर कुछ बड़ा हुआ तो गांव के लोगों ने उसे अपने गाय बछिओं को चराने के लिए ग्वाला रख लिया|इन्दर रोज सुबह गायों को लेकर बन में चला जाता सारा दिन गायों को चराता  और शाम  को वापस  ले आता| गांव वाले उसे बारी बारी से खाना और कपड़ा दे देते थे | इस तरह इन्दर का समय बीत  रहा था| एक दिन किसी ने इन्दर को दो बेर देदिए| बेर स्वाद थे इन्दर ने बेर खा कर गुठलियाँ जंगल में जा कर मिटटी मे दबा दी कुछ समय बाद वहां पर बेर के पेड़  उग आये | इन्दर ने पौधों  की साम संभाल की तो कुछ ही सालों में  पौधे काफी बड़े   हो गए और उन पर फल भी लगने लग गए| बेर काफी मीठे और स्वादिष्ट थे| इन्दर खुद भी खाता और लोगों को भी खाने को देता था| एक बार एक बुढ़िया वहां से जा रही थी|  उस की नज़र बेरों पर गई, उसने इन्दर से बेर मांगे तो इन्दर ने बुढ़िया को बेर दे दिए| वह बुढ़िया एक नरभक्षी थी| जब उसने बेर खाए तो सोचा, ये बेर अगर इतने मीठे हैं तो इन बेरो को खाने वाला कितना मीठा नहीं होगा? उसने इन्दर को पकड़ने   की चाल बनाई | बुढ़िया के कंधे पर एक बोरा टांका हुआ था | उसने सोचा कि  इन्दर को किसी तरह बोरे में  डाल लूँ  तो शाम  का खाना हो जाएगा| उसने इन्दर को अपने पास बुलाया और कहा इस बोरे में  जादू है इस बोरे में  बैठ कर जो मांगो मिल जाता है| इन्दर बेचारा सीधा साधा था उस ने सोचा देखूं क्या होता है| जैसे ही इन्दर बोरे में  बैठा बुढ़िया ने बोरे को  ऊपर से बांध दिया और पीठ पर बोरा लगा कर अपने घर की तरफ चल दी| रास्ते  में  बुढ़िया को प्यास लगी तो पानी पीने के लिए बुढ़िया ने बोरा जमीन पर रख्खा और पानी पीने चली गयी| वहां से कोई  राही  गुजर रहा था|  इन्दर ने उस से बोरे का मुंह खोलने के लिए कहा | उसने बोरे का मुंह खोल दिया| इन्दर बोरे से   बाहर आ गया | इन्दर ने फटा फट बोरे में  पत्थर कांटे भ्रिड ,तितैया आदि जो भी हाथ लगा बोरे में  भर दिया और ऊपर से वैसे ही बांध दिया | बुढ़िया आई बोरा उठाया घर को चल दी | रास्ते  में  उस की पीठ पर कांटे चुभने लगे तो उस ने सोचा कि इन्दर चिकोटी  काट रहा है, उस ने कहा जितना मर्जी चिकोटी   काट ले, घर जा कर तो मैं  तुझे ही काट दूंगी| घर जा कर उस ने अपनी बेटी से कहा कि तू जरा इस का मांस तैयार  कर मैं  अभी आती हूँ, कहकर बुढ़िया कुछ लेने बाहर  चली गयी| बुढ़िया की बेटी ने जब बोरे का मुंह खोला तो सारे भ्रिंद और तितैया बुढ़िया की बेटी पर चिपट   गए और उस का बुरा हाल  कर दिया | बुढ़िया ने आ कर देखा तो पछताने  लगी कि मैंने रास्ते  में  क्यों उतारा|
           कुछ दिनों बाद बुढ़िया अपना भेष  बदल कर फिर से इन्दर के पास जंगल में  गयी और इन्दर से बेर मांगे ,इन्दर ने कहा कि तू वही बुढ़िया है जिस ने कुछ दिन पहले मुझे बोरे में  बंद कर लिया था | बुढ़िया ने कहा कि में  तुझे वैसी बुढ़िया लग रही हूँ  में  तो किसी को यहाँ जानती भी नहीं हूँ| इन्दर ने देखा नजदीक में  अब बेर भी नहीं हैं, तो उसने बुढ़िया से कहा कि बेर तो अब पहुँच से दूर रह गए हैं पंहुचा नहीं जाता है तो बुढ़िया ने तरकीब बताई कि सूखी टहनी पर पैर रख कर आगे बढ़ो तो बेर हाथ आ जाएँगे | इन्दर ने वैसा ही किया |जैसे ही इन्दर ने सूखी टहनी पर पैर रखा टहनी टूट गई और इन्दर नीचे  गिर गया नीचे बुढ़िया पहले से ही तैयार थी उस ने बोरे का मुंह खोल दिया और इन्दर बोरे में  जा गिरा| बुढ़िया ने फटा फट बोरे का मुंह बंद कर दिया| बुढ़िया ने बोरा फिर पीठ से लगाया और घर की तरफ चल दी , आज उसने कहीं भी बोरे को रास्ते में  नहीं उतारा, सीधे घर जाकर ही उतारा| बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि आज तो मैं  इन्दर को पकड़  कर सीधे घर ही लाई हूँ , इस का मांस तैयार कर मैं  इस के तडके   का इन्तजाम  करती हूँ, कह कर बुढ़िया बाहर   चली गयी| बुढ़िया के जाने के बाद जब बुढ़िया की बेटी ने बोरे का मुंह खोला तो देखा कि इन्दर के बाल  बहुत पतले और लम्बे हैं तो उसने इन्दर से पूछा कि
उसके बाल  इतने लम्बे कैसे हो गए, तो इन्दर ने कहा कि मैं  अपने बालों को उखल में  कूटता हूँ ,इस से मेरे बाल  पतले और लम्बे बनते हैं| बुढ़िया की बेटी ने कहा एक बार मेरे बालों को भी कूट दो ताकि मेरे बाल लम्बे और पतले हो जाएँ, इन्दर ने कहा चलो उखल के पास चलो मैं  तुम्हारे बालों को कूट देता हूँ, ताकि तुम्हारे बाल  भी लम्बे हो जाएँ |बुढ़िया की बेटी मान गई और इन्दर को उखल में  ले गई,  इन्दर ने कहा अपने बालों को उखल में डालो मैं  कूट देता हूँ| बुढ़िया की बेटी ने अपने बाल  उखल में  डाल दिए  और इन्दर कूटने लग गया|उसने एक दो चोट बालों में  मारी  फिर उसके बाद बुढ़िया की बेटी के  गर्दन पर दे मारी  जिस से बुढ़िया की बेटी मर गई, इन्दर ने जल्दी से बुढ़िया की बेटी के कपडे  उतार कर खुद पहन लिए और बुढ़िया की बेटी का मांस तैयार करके चूल्हे के पास बैठ गया, जब बुढ़िया आई तो इन्दर चुपचाप बाहर  आ गया और छत के झरोखे से देखने लगा, बुढ़िया ने मांस को भून कर तैयार किया और बेटी को आवाज दी, बेटी होती तो आती वह तो इन्दर ने मारदी |इन्दर जो झरोखे से देख रहा था  बोल उठा "देखी  अपनी चालाकी अपनी बेटी खुद ही खाली" बुढ़िया ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है तो इन्दर ने बुढ़िया की बेटी के कपडे  झरोखे से नीचे गिरा दिए और उस के हाथ की अंगूठी भी गिरा दी| बुढ़िया बेटी की जुदाई सहन नहीं कर सकी| उसने अपनी जीभ अपने दातों तले दबा ली और काटली| इस तरह एक नरभक्षी बुढ़िया का अंत हो गया| इन्दर फिर जंगल में  आ गया और अपनी रोज मर्रा की जिन्दगी जीने लग गया|                      

4 comments:

  1. जैसी करनी वैसी भरनी,,,प्रेरक कहानी,,,

    recent post: वह सुनयना थी,

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  2. बुरे का अंत बुरा!!

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  3. गाज अपनी करनी पर ही गिरती है।

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  4. बहुत रोचक और शिक्षाप्रद कहानी...

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