Friday, December 31, 2010

आप सब को नए साल २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

साल २०१० कुछ ही घंटों का मेहमान है, कुछ ही घंटों बाद साल २०११ आ  जायेगा| नया  साल २०११ आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल २०११ में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की  करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| कल नए साल की  सुबह  होगी आइए इस मौके पर हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
                                                   ख्याली राम जोशी (पाटली)

Friday, December 24, 2010

" वेद-दर्शन "

                                  माँ के आँचलमें जिस प्रभुने,  सद्य  प्रवाहित की  पय- धारा |
                                   क्षिति, पावक, आकाश, पवन रच पैदा की निर्मल जल धारा||
                                   श्रृष्टि   चलाने  हेतु  प्रभु  से,   प्रगटी    वेद-ज्ञान- श्रुति-धारा|
रूप  ऋचा पाया  ऋषिगणसे,  पुस्तक  रूप  ब्यासके   द्वारा||
पारायण  ऋग्वेद  यदि  करें ,  सृष्टिका  विज्ञान  प्राप्त  हो|
याजुर्वेद्का  मनन  करें  तो, अन्तरिक्षका  मर्म ज्ञात  हो||
छंद  बताते  सामवेदके ,  सरल  उपासन  मार्ग    ब्रह्मका |
ज्ञान अथर्वनका जब पायें, स्वस्थ्य बढे इस सारे जग का||
ब्राह्मन, शास्त्र,  पुराण,  अरण्यक,  पावन  है  सोपान वेदके|
शिरोभाग उपनिषद अवस्थित,मुकुट-मणि-सम वेद-ज्ञानके||
मीमांसा, वेदान्त योग यह,  न्याय, वेशेषिक और सांख्य है|
सुखमय जीवन-दर्शनका यह, छ: शास्त्रों का सुलभ मार्ग है||
ईशावास्य, केन, कंठ, मुण्डक,श्वेताश्र्वतर,माण्डुक्य, प्रश्न है|
ब्रह्दारन्य,छान्दोग्य उपनिषद,तैत्तिरीय ऐतरेय, वेद-सर हैं||
सुरभाषामें   काव्य-रूपमें,  ऋषि-अर्जित  वेदाम्रित  न्यारा|
प्रभु-प्रदत्त इस ज्ञान-राशिसे, वंचित रहे ना यह जग सारा||
माँ की   भाषामें   जन-जनमें, पहुंचे  ज्ञानामृतकी   धारा|
वेद-ज्ञान,  लय-रूप  प्राप्त  हो,  यह  ही  है उद्देश्य हमारा||
                       (कल्याण में से)

Friday, December 17, 2010

"भगवान तो आए थे"

             महर्षि रमण से कुछ भक्तों ने पूछा "क्या हमें भगवान के दर्शन हो सकते हैं?"महर्षिने कहा हाँ क्यों नहीं हो सकते! परन्तु   भगवान को पहचान ने वाली आँखें चाहिए| महर्षि ने उन्हें बताया "एक सप्ताह तक भगवान के मन्दिर में पूरी तन्मयता से भगवान का संकीर्तन करो| सातवें दिन भगवान आएँगे, उन्हें पहचानकर, उनके दर्शन कृतकृत्य हो जाना|
              भक्तों ने मन्दिर को सजाया, सुन्दर ढंग से भगवानका श्रंगार किया तथा संकीर्तन शुरू कर दिया| महर्षि रमण भी समय समय पर संकीर्तनमें बैठ जाते| सातवें दिन भंडारा करने का कार्यक्रम था| भगवान के भोग के लिए तरह तरहके व्यंजन बनाए गए थे| मन्दिर के सामने पेड़ के नीचे मैले कपडे पहने एक कोढ़ी  खड़ा हुआ  था| वह एकटक देख रहा था की सायद मुझे भी कोइ प्रसाद देने आए| एक व्यक्ति दया कर के साग-पुरिसे भरा एक दोना उसके लिए लेजाने लगा कि एक ब्राह्मन ने उसे लताड़ते हुए कहा यह प्रसाद भक्त जनों के लिए है, किसी कंगाल कोढ़ी  के लिए नहीं बनाया गाया है| वह दोना वापस ले आया| महर्षि  रमण यह सब देख रहे थे| भंडारा संपन्न होने पर भक्तों ने महर्षि से पूछा"आज सातवें दिन भगवान तो नहीं आए"|
             महर्षि रमण ने बताया मन्दिर के बाहर जो कोढ़ी खड़ा था वे ही तो भगवान थे| तुम्हारे चर्मचक्षुओं ने उन्हें कहाँ पहिचाना? भगवान के दर्शनों के इच्छुक लोगों का मुंह उतर गाया| 

Friday, December 10, 2010

"कुछ व्यावहारिक सच्चाइयाँ "

            गुणी व्यकियों की संगती से बढ कर कोई लाभ नहीं और मूर्खों के संसर्ग से अधिक कोई दुःख नहीं है| समय की हानि सब से बड़ी हानि है| धर्मानुकूल आचरण में अनुराग ही निपुणता है| शूर वही है जो जितेन्द्रिय है|पत्नी वह अच्छी है जो पति  के अनुकूल आचरण करे| विद्या से बड़ा कोई धन नहीं है| अपने घर में रहने से अधिक  कोई सुख नहीं है| राज्य वही है जहाँ राजा का अनुशासन सफल है| तात्पर्य यह कि साधु स्वभाव वाले गुणी ब्यक्तियों के संग में रहने से अधिक लाभप्रद कोई बात नहीं| ब्यक्ति प्राय: अपनी परिस्थितियों से ही  प्रभावित होकर नहीं रहना चाहता है| सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य कभी अकेला नहीं रहना चाहता और साथी की तलाश उसके जीवन के प्रारम्भ में ही शुरू हो जाती है| यदि साथी अच्छे मिल जाएँ तो वह भी अच्छे मार्ग पर चल पड़ता है| मनुष्य का कौशल इसमें नहीं है कि वह अपनी कुटिल चालों से दूसरों को ठग कर आगे बढे| वरन कौशल  तो यह है किवह सदाचार की मान्यताओं  और महांपुरुशों द्वारा सम्मत विश्वासों का सम्मान करते हुए अपने में सदगुणों की प्रतिष्ठा  करता जाए| धर्मानुकूल चलने में कुछ कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं, किन्तु कठिनाइयों को पार करने की शक्ति भी उसी से मिलती है| धर्म मनुष्य को संयम की शिक्षा देता है, सच्चा संयमी ही शूर वीर होता है| संसार पर वही विजय पाता है जो संयम से अपने पर ही विजय पाए|
कल्याण में से|

Friday, December 3, 2010

दोषी कौन ?

बहुत खोया,                                   
मैं क्यों रोया?
मैंने माना-मेरा  दोष,
मुझ को जिनसे रोष था,
आज उनकी बेबसी पर,
और अपनी बेबसी पर,
मुझ को भान आया,
मेरा साया ही मेरा दोष,
मेरा अपना दोषी,    
मैं ही बेकस-खुद का था,
                            मैं खुद का दोषी|