Wednesday, July 7, 2010

"एक चुप, सौ सुख"

            क  जमीदार था एक उसकी घर वाली थी| घर मे दो जने ही थे | जमीदार खेत मे काम करता था और जमिदारनी  घर का काम करती थी | जमीदार और जमिदारनी दोनों ही गरम स्वभाव के थे| थोड़ी थोड़ी बात पर दोनों मे ठन जाती थी| कभी कभी तो जमिदारनी का बना बनाया खाना भी बेकार हो जाता था| एकदिन जमिदारनी अपनी अपनी रिश्ते दारी  मे गई| वहां उसे एक बुजुर्ग औरत मिली | बातों बातों मे जमिदारनी ने बुजुर्ग औरत को बताया की मेरा घर वाले का मिजाज बहुत चिडचिडा है वे जब तब मेरे से लड़ते ही रहते हैं| कभी कभी इससे  हमारी बनी बनाई रसोई बेकार चली जाती है| बुजुर्ग महिला ने कहा यह कोई बड़ी बात नहीं है |ऐसा तो हर घर मे होता रहता है| मेरे पास इस की एक अचूक दवा है| जब भी कभी तेरा घरवाला तेरे साथ लड़े, तब तुम उस दवा  को अपने मुंह मे रख लेना, इस से तुम्हारा घरवाला अपने आप चुप हो जाएगा| बुजुर्ग महिला अपने अन्दर गई, एक शीशी भर कर ले आई और जमिदारनी को देदिया | जमिदारनी ने घर आ कर दवा की परीक्षा करनी शुरू कर दी जब भी जमीदार उस से लड़ता था जमिदारनी दवा मुंह मे रख लेती थी| इस से काफी असर दिखाई दिया | जमीदार का लड़ना काफी काम हो गया था| यह देख कर जमिदारनी काफी खुश हुई| वह ख़ुशी- ख़ुशी बुजुर्ग महिला के पास गई और कहा आप की दवाई तो कारगर सिद्ध  हुई है, आप ने इस मे क्या क्या डाला है जरा बता देना, मे इसे घर मे ही बना लुंगी| बार बार आना जाना मुश्किल हो जाता है| इसपर बुजुर्ग महिला ने जवाब दिया की जो शीशी मैंने तुम्हे दी  थी उस मे शुद्ध जल के सिवाय कुछ भी नहीं था| तुम्हारी समस्या का हल तो तुम्हारे चुप रहने से हुई है | जब तुम दवा यानिकी पानी को मुंह मे भर लेती थी तो तुम बोल नहीं सकती थी और तुम्हारे चुप्पी  को देख कर तुम्हारे घर वाले का भी क्रोध शांत हो जाता था|इसी को "एक चुप सौ सुख" कहते हैं| बुजुर्ग महिला ने जमिदारनी को सीख दी की इस दवा  को कभी भूलना मत और अगर किसी को जरूरत पड़े तो आगे भी देते रहना| जमिदारनी ने बुजुर्ग महिला की बात को गांठ बांध लिया और ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर को आ गई| 
                                                             के: आर: जोशी. (पाटली)

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