Monday, July 5, 2010

जैसी करनी वैसी भरनी

           क गांव मे एक गरीब किशान  परिवार रहता था| किशान  का नाम जोखू था | हम उन्हे जोखू ताया कह कर बुलाते थे| परिवार मे जोखू ताया, ताई और दो बच्चे थे| बड़े बेटे का नाम संभु था और छोटे बेटे का नाम दयाल था| बड़ा बेटा तायाजी को खेती के कम मे मदद करता था|उम्र मे भी काफी बड़ा था|जोखू तायाजी ने संभु की सदी बड़े धूम धाम से की| कुछ समय बाद एक बीमारी के कारन तायाजी का स्वर्ग वास हो गया | खेती से दो घरों का गुजरा नहीं हो सकता था इस लिए संभु ने दयाल की पढाई चालू रख्खी ताकि कहीं नौकरी कर सके| दयाल ने भी मेहनत कर के खूब पढाई की |मैट्रिक कर ने के बाद दयाल को पास के शहर मे ही नौकरी मिल गई| दयाल नौकरी करता था संभु खेती का काम| एक बार संभु की किसी बात पर ताई से नाराजगी हो गई और उसने ताई जी से बोलना छोड़ दिया| समय बीत ता गया | कुछ समय बाद दयाल की भी शादी हो गई| शादी के कुछ समय बाद ही दयाल अपनी घरवाली को शहर  ले गया और शहर  मे ही घर बना कर रहने लग गया|कभी कभार मिलने गांव आ जाया करता था | एक बार ताई बीमार हो गई| दयाल उसे अपने साथ शहर ले आया|गांव से सभी ताई को मिलने आया करते थे सिवाय संभु के| एक बार जग्गू को शहर मे कोई काम था|वह शहर गया तो उसे याद आया की ताई भी शहर मे ही है | वह दयाल के घर की तरफ हो लिया| वहां जाकर उसने देखा की ताई एक कमरे मे लेटी आसमान  को निहार रही है| जग्गू ने ताई को प्रणाम किया और ताई के पैर छुए| ताई ने लेटे- लेटे ही उसे आशर्वाद दिया| जग्गू ताई के पास ही बैठ गया| बातों बातों मे ताई ने जग्गू से पूछा की कभी संभु से मुलाकात होती है? जग्गू ने बताया की कभी-कभी आते जाते बात हो जाती है| ताई ने जग्गू से कहा की संभु को कभी मेरे को मिलने के लिए कह देना| अगर वह मुझ से बात नहीं करना चाहता है तो भी इस दरवाजे से आ कर मेरे सामने से उस दरवाजे से निकाल जाए|ये बात कहते हुए ताई की आँखें दब दबा गईं और गला भर आया| यह मंज़र देख कर जग्गू का भी मान भर आया| उसने ताई से वडा किया की वह संभु को जरूर से जरूर उसके पास भेजेगा| गांव आने के बाद वह संभु को मिलने गया और कहा की ताई तुम्हें याद करती है आप ताई से मिल लेना | संभु ने बताया की वह कल को ही शहर जा रहा है|सुबह ही संभु और उसका बेटा कुछ सब्जी आदि लेकर शहर की और चले गए| जग्गू खुश था की उसने बहुत बड़ा काम कर दिया है मां बेटे को मिलाने का| साम को जब संभु वापिस लौटा तो जग्गू उसको मिलने को जाही रहा था की किसी ने उसे बताया की संभु शहर जाकर भी अपनी मां से नहीं मिला बेटे के हाथ ही सब्जी आदि भेज दी थी|
             बेटे को मिलने की तमन्ना दिल मे ही लेकर ताई एक दिन चाल बसी| जग्गू ने भी दयाल को मिलना छोड़ दिया था| उसके रास्ते से इधर उधर हो जाता था| काफी महीनों बाद जग्गू ने किसी के मुंह से सुना की संभु को एक अजीब सी बीमारी ने घेर लिया है| कोई उसके पास जाता ही नहीं है ऐसी छूत की बीमारी ने उसे घेर लिया था| बीमारी का सुन कर जग्गू से रहा नहीं गया वह संभु से मिलने उसके घर गया तो देखा की संभु अकेला ही कमरे मे पड़ा है| कोई उसको पूछने वाला भी नहीं है| जग्गू संभु के सामने खड़ा था किसी के मुंह से कोई बात नहीं निकाल रही थी|आखिर मे संभु ने ही ख़ामोशी तोड़ी और कहा की  मैंने तो कभी कोई पाप नहीं किया था जिसकी मुझे यह सजा मिल रही है| जग्गू के सामने ताई का आंसू भरा चेहरा घुमने लगा और उसके मुंह से निकाल पड़ा जैसी करनी वैसी भरनी|                                के: आर: जोशी. (पाटली)

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