Sunday, May 30, 2010

बाघ नाथ (बागेश्वर )

देवभूमि उत्तराखंड मे एक जिला है बागेश्वर जो सरयू और गोमती के संगम पर बसा हुआ है | बागेश्वर एक सुन्दर  घाटी   मे बसा हुआ है इस के चारो तरफ ऊंची ऊंची पहारियां  है, यहाँ से कुछ दूरी पर झिरोली नाम की जगह है जो ताकुला बागेश्वर मार्ग मे स्थित है यहाँ पर मैग्नेशियम की खान है जो भारत मे बहुत कम जगह पर मिलती है|              
बागेश्वर  के नजदीक ही पिंडारी ग्लेशियर हैं जहाँ हमेशा  बरफ के गलेशियर बने रहते हैं | बागेश्वर मे बहुत पुराना शिव मंदिर है जो सरयू और गोमती के संगम पर है जिसे बाघ नाथ का मंदिर कहते हैं | इस मंदिर  के बारे मे कहा गया है कि जब सरयू सर्मूल से निकल कर जमीन मे बह रही थी तो सरयू को बागेश्वर नाम की जगह से होते हुए आगे जाना था जब सरयू बागेश्वर पहुंची तो देखाकि  कोई तपस्वी   रस्ते मे तपस्या  कर रहा है| सरयू उन की तपस्या को भंग नहीं करना चाहती थी| सरयू पीछे ही रुक गयी| पानी जमा होना शुरू  हो गया| आस पास के पहाड़  सरयू मे गिरने लगे पहाड़  मैदान मे बदलने लगा जिस को आज मंडल्सेरा कहते हैं| शिव जी को जब पता चला तो आश्चर्य मे पढ़ गए| शिव जी ने सोचा अगर सरयू आगे नहीं बढ़ी तो सारा पानी यहीं जमा हो जाएगा और पहाड़  पानी मे समां जाएगे  |                                                                                                                                                                                                                       इस समस्या   का समाधान करने के  लिए उन्हें  मार्कंडेय                           ऋषि  की तपस्या भंग करनी थी पर डर थाकि   कहीं   ऋषि श्राप न देदे  इस  लिए  इस  काम  के           लिए शिवजी  ने  पार्वती जी को सहायता करने को कहा|पार्वती जी सहायता के लिए तैयार   हो गईं| शिव  जी ने पार्वती    जी से कहा  तुम गाय का रूप धारण कर के ध्यान  मग्न मार्कंडेय ऋषि के पास जाना और मे बाघ का रूप धारण कर के तुम्हारे पास आऊंगा तो तुम जोर जोर से रम्भाना ताकि  मार्कंडेय ऋषि की तपश्या भंग हो जाए| शिव जी के बताए अनुसार पार्वती जी ने ऋषि के नजदीक जा कर गाय का रूप धर लिया और शिवजी भी बाघ का रूप धरके वहां पहुँच गए | जैसे ही शिवजी बाघ के रूप मे गाय के सामने गए गाय ने जोर जोर से रम्भाना शुरू कर दिया गाय की आवाज सुनते ही ऋषि की आँख खुल गयी सामने देखते हैं कि  गाय के पीछे बाघ पड़ा हुआ है तो ऋषि गाय को बचाने  के लिए उठ खड़े  हुए और गाय के पीछे भागे इतने मे सरयू को आगे जाने का रास्ता मिल गया और सरयू अपने गंतब्य की ओर चल दी इस तरह शिवजी ने ऋषि वर को यहाँ पर बाघ के रूप मे दर्शन दिए  बाघ के रूप मे दर्शन देने की वजह से यहाँ    का नाम बागेश्वर पड़ गया    ओर उसी  स्थान  पर शिवजी की बाघनाथ के रूप मे पूजा होने लगी| बाद मे यहाँ पर बाघ नाथ जी का मन्दिर स्थापित हो गया| जो सरयू और गोमती के संगम पर आज भी विधमान है|                                                                                                                                              बागेश्वर के नजदीक ही एक पर्यटक और धार्मिक  जगह  है  गौरीउद्दियार|  यहाँ  के  बारे मे कहा जाता है की जब शिवजी गौरा को बिआह कर कैलाश पर्वत              की  तरफ      को  जा रहे थे  तो रस्ते मे इस गौरिउद्द्यर नाम की जगह पर ठोढ़ी द्देर विश्राम के लिए गौरा की डोली       यहाँ पर उतारी गई थी | यहाँ पर डोली उतरने के निसान आज भी मौजोद हैं| यहाँ उद्द्यर का मतलब गुफा है| इस गुफा मे ही डोली के पैरों के निसान अंकित हैं|        

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